Kavita Jha

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कर्म देखकर हत्यारों के शोणित में है उठे उबाल# लेखनी दैनिक काव्य प्रतियोगिता -17-Oct-2022

कर्म देखकर हत्यारों के, शोणित में है उठे उबाल 
वीर या आल्हा छंद(16,15)

छपती अखबारों में खबरें, पढ़ गुस्से में होते लाल।
कर्म देखकर हत्यारों के,शोणित में है उठे उबाल।।

कभी  संपत्ति के खातिर ही, बेटा देता माँ को मार।
भूल गया वो कोख सुहानी, कितना करती थी वो प्यार।।
खुद भूखे रह जिसको पाला, वही बना उसका तो काल।
कर्म देखकर हत्यारों के, शोणित में है उठे उबाल।।(१)

वो दहेज के लोभी होते, जो बहुओं को करते भस्म।
कितना उनका पेट भरोगे , नहीं निभानी अब यह रस्म।।
बेटी कोई बोझ न होती, फिर क्यों जीना उसे मुहाल।
कर्म देखकर हत्यारों के, शोणित में है उठे उबाल।।(२)

छोटे कपड़े वो पहनी थी, इज्जत लूट भरे बाजार।
फोटो खींचे देख तमाशा , जनता कहती हम लाचार।।
तीन साल की बच्ची को भी, नहीं छोड़ते यह चंडाल।
कर्म देखकर हत्यारों के, शोणित में है उठे उबाल।। (३)
****
कविता झा'काव्या कवि'
#लेखनी दैनिक काव्य प्रतियोगिता 

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11 Comments

बहुत खूब मेम👏🏻👏🏻 यह गीत झंझोर देने वाला है।

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Mahendra Bhatt

18-Oct-2022 01:11 PM

शानदार

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Abhinav ji

18-Oct-2022 09:09 AM

Nice

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